“विद्या ददाति विवेक:” यह अक्षरश: सत्य है| शिक्षा व्यक्ति को सद और असद, पाप और पुण्य एवं सत्कर्म और दुष्कर्म में भेद करने की क्षमता प्रदान करती है| पुराणों के अनुसार “विद्या-धनं सर्व धनं प्रधानम”| यदि विद्या सबसे बड़ा धन है तो विद्या दान महादान है| मेरी दृष्टि में हमारे विद्यालय ईट और पत्थरों से बने भवन मात्र नहीं है, बल्कि वह ऐसी संस्कार शालाएँ हैं जहाँ हमारे समाज और राष्ट्र के भविष्य की संरचना होती है| किसी विद्यालय में शिक्षार्थ विद्यार्थी बन कर आना जीवन का सौभाग्य है| किसी विद्यालय के प्रबंध तंत्र की अग्रिम कड़ी के रूप में विद्यार्जन के लिए स्वस्थ और उचित वातावरण को व्यवस्था करना एक सुखद कार्य है और किसी व्यक्ति के लिए बड़े गौरव की बात भी है| अपने इस आलेख के समय, मैं भी यही अनुभव करता हूं|
मैं विद्यालय का प्रबन्धक होने के नाते सभी क्षेत्रवासियों को पूर्ण विश्वास दिलाना चाहता हूं कि आप सभी शिक्षा के क्षेत्र में हमारा पूर्ण सहयोग करेंगे जिससे हमारा विद्यालय क्षेत्र की जनता को अच्छा परिणाम दे सके|मैं विद्यालय की प्रधानाचार्या, अध्यापकों एवं कर्मचारियों से यह आशा रखता हूं कि वे सभी भविष्य को दृष्टि में रखकर अथक परिश्रम करेंगे, जिससे विद्यालय का प्रदेश में शिक्षा, खेलकूद एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम सभी में स्थान बने | मैं सभी छात्र छात्राओं के साथ साथ विद्यालय के सभी कार्यकर्ताओं के उज्जवल भविष्यकी कामना करता हूं |
श्री आलोक वत्स
प्रबन्धक - श्री सरस्वती विद्या मंदिर हा० सै० स्कूल, गाजियाबाद